kanchan singla

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चांद और चांदनी

जब जब निकलता चांद है

तब तब निकलती चांदनी है
दोनों साथ साथ आते हैं
दोनों साथ साथ जाते हैं।।

रिश्ता अनोखा है इनका
चांद से ही चांदनी है
चांदनी से ही रोशनी है
चांद से मिलती शीतलता है
चांदनी में ही शीतलता है।।

चांद निकलता जब रोज शाम को
फैलाकर चांदनी धीमी धीमी
चांद दूर आसमान में चमकता है
उसकी चांदनी पृथ्वी पर फैल जाती है
दोनों दूर दूर होकर भी
एक दूसरे से जुड़े हुए रहते हैं।।

# कॉपीराइट_लेखिका - कंचन सिंगला©®
लेखनी प्रतियोगिता -30-Jul-2022

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15 Comments

बहुत ही उम्दा और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Mithi . S

01-Aug-2022 04:55 PM

Nice

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Shnaya

01-Aug-2022 08:50 AM

शानदार

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